वर्तमान मे (2022) इस बेंच का गठन चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया D.Y CHANDRACHUD के द्वारा किया गया है|
न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति
आज़ादी के 75 साल बाद भी, न्यायपालिका मे महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किये गये है| सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से केवल 11 महिला न्यायधीश हैं,और अब तक कोई भी महिला मुख्य न्यायधीश नहीं बनी है|भारत के उच्च न्यायालयों मे 680 न्यायाधीशों में सिर्फ 83 ही महिला हैं| अधीनस्थ न्यायालयों मे भी सिर्फ 30% ही महिला देखने को मिलती हैं|
आज के समये मे शीर्ष अदालत मे सिर्फ तीन महिला न्यायाधीश हैं,जिनमे न्यायमूर्ति कोहली,बी वी नागरतना, और त्रिवेदी शामिल हैं|
2027 मे भारत को पहली मुख्य महिला न्यायाधीश मिलने जा रहीं हैं जो कि जस्टिस नागरतना होंगी |
कम महिला प्रतिनिध्व के कारण -
1.महिलाओं के प्रतिधित्व मे कमी होने का मुख्य कारण समाज पर पेट्रीक सोच का दबाव होना है, जहा आज भी महिलाओं को पुरुषों के पीछे रहने पर ज़ोर दिया जाता है|
2. न्यायाव्यवस्था मे अपारदर्शी कोलेजियम प्रणाली कार्य कर रही है|
3. महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया है|
4. इसके साथ कि उन पर पारिवारिक जिम्मेंदारियाँ भी होती हें, जिसके चलते मे आगे नहीं बाद पाती हें|
5. मुक़दमेबाज़ी मे पर्याप्त महिलाएं नहीं हैं( जिसकी वजह से महिलाये ऐसी जगह पर नहीं जाना चाहती )
6. न्यायिक अवसंरचना (infrastructure) भी महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित नहीं करता है|
महिलाओं का प्रतिनिधित्व क्यू ज़रूरी है ??
न्याय वितरण प्रणाली मे सुधार लाने के लिए जरूरी है कि न्यायापालिका मे महिलाओ कि भागीरदारी को ज्यादा से ज्यादा बड़ावा दिया जाये| समाज मे ज्यादा तर कुरीतियाँ महिलाओ के साथ होती है इसलिए ये ज़रूरी है कि उनकी सुनवाई भी महिला द्वारा ही कि जाये क्यूकी उसका हल पुरुषों कि अपेक्षा महिला ज्यादा सटीक निकाल सकती हैं| इसके साथ ही महिलाओं मे अलग अलग प्रभावों कि सूक्ष्म समझ होती है |लोगो तक एक शक्तिशाली संदेश भेजने के लिए ओर उनके किये न्याय सुलभ कराने के लिए जो न्याए चाहते है, ज़रूरी है कि अदालतों कि वैधता मे वृद्धि कि जाये|
इसके साथ ही योन हिंसा से जुड़े मामलों के लिए एक संतुलित और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए , इस लिए ज़रूरी है कि न्याय व्यवस्था मे महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बड़ाया जाना चाहिए|
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